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वि॒श्वक॑र्मा त्वा सादयत्व॒न्तरि॑क्षस्य पृ॒ष्ठे ज्योति॑ष्मतीम्। विश्व॑स्मै प्रा॒णाया॑ऽपा॒नाय॑ व्या॒नाय॒ विश्वं॒ ज्योति॑र्यच्छ। वा॒युष्टेऽधि॑पति॒स्तया॑ दे॒वत॑याङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वा सी॑द ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। त्वा॒। सा॒द॒य॒तु॒। अ॒न्तरि॑क्षस्य। पृ॒ष्ठे। ज्योति॑ष्मती॒मिति॒ ज्योतिः॑ऽमतीम्। विश्व॑स्मै। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। व्या॒नाय॑। विश्व॑म्। ज्योतिः॑। य॒च्छ॒। वा॒युः। ते॒। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। सी॒द॒ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उक्त विषय ही अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! जिस (ज्योतिष्मतीम्) बहुत विज्ञानवाली (त्वा) तुझ को (विश्वस्मै) सब (प्राणाय) प्राण (अपानाय) अपान और (व्यानाय) व्यान की पुष्टि के लिये (अन्तरिक्षस्य) जल के (पृष्ठे) ऊपरले भाग में (विश्वकर्मा) सब शुभ कर्मों का चाहने हारा पति (सादयतु) स्थापित करे सो तू (विश्वम्) सम्पूर्ण (ज्योतिः) विज्ञान को (यच्छ) ग्रहण कर, जो (वायुः) प्राण के समान प्रिय (ते) तेरा (अधिपतिः) स्वामी है, (तया) उस (देवतया) देवस्वरूप पति के साथ (ध्रुवा) दृढ़ (अङ्गिरस्वत्) सूर्य्य के समान (सीद) स्थिर हो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्री को उचित है कि ब्रह्मचर्य्याश्रम के साथ आप विद्वान् हो के शरीर, आत्मा का बल बढ़ाने के लिये अपने सन्तानों को निरन्तर विज्ञान देवे। यहाँ तक ग्रीष्म ऋतु का व्याख्यान पूरा हुआ ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(विश्वकर्मा) सकलेष्टक्रियः (त्वा) त्वाम् (सादयतु) (अन्तरिक्षस्य) जलस्य (पृष्ठे) उपरिभागे (ज्योतिष्मतीम्) बहु ज्योतिर्विद्यते यस्यास्ताम् (विश्वस्मै) सर्वस्मै (प्राणाय) (अपानाय) (व्यानाय) (विश्वम्) संपूर्णम् (ज्योतिः) विज्ञानम् (यच्छ) गृहाण (वायुः) प्राण इव प्रियः (ते) तव (अधिपतिः) (तया) (देवतया) (अङ्गिरस्वत्) सूर्यवत् (ध्रुवा) दृढा (सीद)। [अयं मन्त्रः शत०८.३.२.२-४ व्याख्यातः] ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! या ज्योतिष्मतीं त्वा विश्वस्मै प्राणायाऽपानाय व्यानायाऽन्तरिक्षस्य पृष्ठे विश्वकर्मा सादयतु, सा त्वं विश्वं ज्योतिर्यच्छ। यो वायुरिव तेऽधिपतिरस्ति तया देवतया सह ध्रुवाङ्गिरस्वत् सीद ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्री ब्रह्मचर्येण स्वयं विदुषी भूत्वा शरीरात्मबलवर्द्धनाय स्वापत्येभ्यो विज्ञानं सततं प्रदद्यादिति ग्रीष्मर्त्तुव्याख्यानं कृतम् ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्त्रीने ब्रह्मचर्य आश्रम पाळून विदुषी बनावे व शरीर आणि आत्म्याचे बल वाढविण्यासाठी आपल्या संतानांना सदैव ज्ञान द्यावे. या मंत्राप्रमाणे ग्रीष्म ऋतूची व्याख्या पूर्ण झालेली आहे.